पीतल बर्तन उद्योग: छतरपुर की आखिरी सांसें, कारीगरों की व्यथा

छतरपुर: पीतल बर्तन उद्योग की अंतिम सांसें
आज से कई साल पहले, पीतल के बर्तन हर घर में उपयोग किए जाते थे। लेकिन मशीनीकरण के बढ़ने के साथ, पीतल के बर्तनों का उपयोग धीरे-धीरे कम होने लगा। मध्य प्रदेश के छतरपुर शहर में आज भी पीतल के बर्तन बनाए जाते हैं, लेकिन जिले का पीतल बर्तन उद्योग अब अंतिम सांसें गिन रहा है, क्योंकि जिले में पीतल के बर्तनों की मांग बहुत कम हो गई है। पीतल बर्तन से जुड़े व्यापारी और मजदूर बताते हैं कि जब से प्लास्टिक और स्टील बाजार में आया है, तब से पीतल की मांग बहुत कम हो गई है। यह सिर्फ शादियों के सीजन में ही बिकता है।
पीतल कारीगरों की कहानी
छतरपुर शहर के तामराई मोहल्ले में रहने वाले पीतल कारीगर संतोष कुशवाहा ने कहा कि पीढ़ियों से हम पीतल के बर्तन अपने हाथों से बना रहे हैं। गिलास, कटोरी, लोटा, भगोना, हांडी और खुरवा से लेकर कुपरी सब बनाते हैं, लेकिन यह काम अब कुछ दिन ही चलता है। जब तक शादियों का सीजन होता है, तब तक हमें बर्तन बनाने का काम मिलता है। इसके बाद हम बेरोजगार हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जब से बाजार में स्टील आना शुरू हुआ है, तब से पीतल के बर्तनों का धंधा कम ही होता चला जा रहा है। आजकल लोगों के घरों में स्टील बर्तन का उपयोग ज्यादा हो रहा है। वहीं, पीतल का बर्तन का उपयोग सीमित हो गया है।
शादियों में मांग
कारीगर बताते हैं कि शादी के सीजन में ही पीतल बर्तन की सबसे ज्यादा डिमांड होती है, क्योंकि शादियों में लोग आज भी पीतल के बर्तन देते हैं, इसलिए आज भी शादी के सीजन में पीतल के बर्तनों की डिमांड रहती है। लेकिन यह मांग पूरे साल के लिए उद्योग को जीवित रखने के लिए पर्याप्त नहीं है।
पीतल उद्योग के सामने चुनौतियां
- बढ़ता मशीनीकरण: मशीनों से बने सस्ते स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों के कारण पीतल के बर्तनों की मांग कम हो रही है।
- कच्चे माल की कमी: पीतल बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल की उपलब्धता कम हो रही है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ रही है।
- कारीगरों की कमी: युवा पीढ़ी इस पारंपरिक शिल्प को अपनाने में रुचि नहीं दिखा रही है, जिससे कुशल कारीगरों की कमी हो रही है।
- सरकारी सहायता का अभाव: पीतल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से पर्याप्त सहायता नहीं मिल रही है।
समाधान की राह
पीतल उद्योग को बचाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- सरकारी सहायता: सरकार को पीतल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
- विपणन: पीतल के बर्तनों के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विपणन अभियान चलाने चाहिए।
- डिजाइन में नवाचार: पीतल के बर्तनों को आधुनिक डिजाइन में पेश करना चाहिए ताकि वे युवाओं को आकर्षित कर सकें।
- ऑनलाइन बिक्री: पीतल के बर्तनों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचना चाहिए ताकि वे अधिक ग्राहकों तक पहुंच सकें।
कारक | प्रभाव |
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मशीनीकरण | पीतल के बर्तनों की मांग में कमी |
कच्चे माल की कमी | उत्पादन लागत में वृद्धि |
कारीगरों की कमी | उत्पादन में कमी और गुणवत्ता में गिरावट |
सरकारी सहायता | उद्योग को बढ़ावा देने और कारीगरों को समर्थन देने में मदद करता है |
निष्कर्ष
छतरपुर का पीतल बर्तन उद्योग एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत है। इसे बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकारी सहायता, विपणन, डिजाइन में नवाचार और ऑनलाइन बिक्री के माध्यम से इस उद्योग को पुनर्जीवित किया जा सकता है।