सूरन की खेती: कम लागत में ज़्यादा मुनाफा!

सूरन की खेती: किसानों के लिए मुनाफे का सौदा
सतना में सूरन, जिसे जिमीकंद भी कहा जाता है, की खेती किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गई है। कम लागत, कम पानी की आवश्यकता और उच्च लाभ क्षमता के कारण, यह फसल किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। इसके अतिरिक्त, सूरन के औषधीय गुण इसे स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
सूरन की खेती के फायदे
- कम लागत: सूरन की खेती में अन्य फसलों की तुलना में कम निवेश की आवश्यकता होती है।
- कम पानी की आवश्यकता: यह फसल सूखे क्षेत्रों के लिए आदर्श है क्योंकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है।
- उच्च मुनाफा: बाजार में सूरन की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है।
- औषधीय गुण: सूरन पाचन में सहायक, मधुमेह को नियंत्रित करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पेट से जुड़ी बीमारियों से राहत दिलाने में मदद करता है।
सूरन की खेती कैसे करें?
सूरन की रोपाई मई-जून के महीने में की जाती है। फसल लगभग 9 से 12 महीनों में तैयार हो जाती है। इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त होती है।
सूरन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
बलुई दोमट मिट्टी सूरन की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
सूरन की सिंचाई
सूरन की फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर सिंचाई करें।
सूरन की कटाई
जब पत्ते पीले पड़ने लगें और सूख जाएं, तो फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कंदों को सावधानीपूर्वक खोदकर निकाल लें।
सूरन के औषधीय गुण
खेती विशेषज्ञ विष्णु तिवारी के अनुसार, सूरन पेट की समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। यह बवासीर, लिवर, गैस, अल्सर और यहां तक कि जॉन्डिस जैसी बीमारियों में भी कारगर माना जाता है। पारंपरिक रूप से, बवासीर के मरीजों को सूरन की सब्जी, अचार या कढ़ी के रूप में दिया जाता है।
बीमारी | सूरन के फायदे |
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बवासीर | सूजन और दर्द को कम करता है। |
लिवर | लिवर के कार्यों को बेहतर बनाता है। |
गैस | पाचन को सुधारता है और गैस को कम करता है। |
अल्सर | पेट की परत को शांत करता है। |
जॉन्डिस | लिवर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता है। |
व्यवसायिक दृष्टि से सूरन
वर्तमान में, सूरन का बाजार भाव 30 से 40 रुपये प्रति किलो है। इसकी बुवाई गर्मियों में लगभग 2 इंच गहराई में की जाती है और 9 से 12 महीने बाद एक अच्छी उपज ली जा सकती है। इस प्रकार, सूरन न केवल एक पारंपरिक सब्जी है, बल्कि किसानों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत भी बन रहा है।
निष्कर्ष
सूरन की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक और टिकाऊ विकल्प है। कम लागत, कम पानी की आवश्यकता और उच्च बाजार मूल्य के कारण, यह फसल किसानों की आय को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके औषधीय गुणों के कारण, यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।