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इलेक्टोरल बॉन्ड: क्या है चंदा, किसने दिया, क्यों?

July 4, 2025 by Ankit Vishwakarma

Electoral Bonds

Electoral Bonds : इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय माध्यम था, जिस पर अब रोक लगा दी गई है। इस लेख में, हम इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है, इसे कौन खरीद सकता था, और इस पर रोक क्यों लगाई गई, इस बारे में विस्तार से जानेंगे।

Table of Contents

  • इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है? | What is Electoral Bonds
    • Electoral Bonds की मुख्य विशेषताएं:
  • इलेक्टोरल बॉन्ड: किस पार्टी को कितना चंदा मिला?
  • Electoral Bonds पर रोक क्यों?
    • सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व:
  • Electoral Bonds: कौन और कब खरीद सकता था?
  • Electoral Bonds कैसे काम करते थे?
  • निष्कर्ष
    • क्रिप्टो न्यूज़: 2025 से क्रिप्टो पर लोन, कौन से टोकन मान्य?
    • कमल हासन की कुल संपत्ति: जानिए पूरी जानकारी!
    • शनाया कपूर की कुल संपत्ति: जानिए कितनी है!

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है? | What is Electoral Bonds

भारत सरकार ने Electoral Bonds योजना की घोषणा 2017 में की थी, और इसे 29 जनवरी, 2018 को लागू किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रॉमिसरी नोट की तरह था, जिसे भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से खरीदा जा सकता था। इसके माध्यम से, दानकर्ता अपनी पसंदीदा पार्टी को गुमनाम रूप से दान कर सकते थे।

Electoral Bonds केवल 15 दिनों के लिए वैध होते थे। केवल वही राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा प्राप्त करने के पात्र थे, जिन्होंने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1% वोट हासिल किया हो।

Electoral Bonds की मुख्य विशेषताएं:

  • एसबीआई से खरीदा जा सकता था।
  • दानकर्ता की पहचान गुप्त रखी जाती थी।
  • 15 दिनों की वैधता अवधि।
  • केवल 1% से अधिक वोट पाने वाले दलों को ही चंदा।

इलेक्टोरल बॉन्ड: किस पार्टी को कितना चंदा मिला?

यहां एक तालिका दी गई है जो दिखाती है कि विभिन्न राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से कितना चंदा मिला:

पार्टीचंदा (करोड़ रुपये)
बीजेपी6,986.5 (2019-20 में सबसे ज्यादा 2,555)
कांग्रेस1,334.35
टीएमसी1,397
डीएमके656.5
बीजेडी944.5
वाईएसआर कांग्रेस442.8
तेदेपा181.35
सपा14.05
अकाली दल7.26
एआईएडीएमके6.05
नेशनल कॉन्फ्रेंस0.50
बीआरएस1,322

Electoral Bonds पर रोक क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bonds योजना को अनुच्छेद 19 (1) (A) का उल्लंघन मानते हुए इस पर रोक लगा दी है। कोर्ट का कहना है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि किस सरकार को कितना पैसा मिला है।

अदालत ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से किए गए सभी योगदानों का विवरण चुनाव आयोग को 31 मार्च, 2024 तक देने का निर्देश दिया। चुनाव आयोग को 13 अप्रैल, 2024 तक अपनी वेबसाइट पर यह जानकारी साझा करने का निर्देश दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व:

  • जानकारी का अधिकार सुनिश्चित।
  • राजनीतिक पारदर्शिता को बढ़ावा।
  • चुनावी प्रक्रिया में जवाबदेही।

Electoral Bonds: कौन और कब खरीद सकता था?

इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में जारी किए जाते थे। कोई भी भारतीय नागरिक जिसके पास केवाईसी-अनुपालन वाला बैंक खाता है, वह इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता था। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता था।

एसबीआई से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते थे।

Electoral Bonds कैसे काम करते थे?

इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग करना आसान था। ये बॉन्ड 1,000 रुपये के गुणकों में उपलब्ध थे, जैसे 1,000, ₹ 10,000, ₹ 100,000 और ₹ 1 करोड़।

केवाईसी-अनुपालन खाते वाला कोई भी दानकर्ता एसबीआई से बॉन्ड खरीद सकता था और इसे किसी भी राजनीतिक दल को दान कर सकता था। इसके बाद, प्राप्तकर्ता इसे पार्टी के सत्यापित खाते के माध्यम से नकदी में परिवर्तित कर सकता था। इलेक्टोरल बॉन्ड केवल 15 दिनों के लिए वैध होते थे।

निष्कर्ष

इलेक्टोरल बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक बेहद विवादास्पद तरीका रहा है, जिसने फंडिंग में गोपनीयता को बढ़ावा दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने से अब चुनावी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में वित्तीय लेन-देन को लेकर एक नई बहस की शुरुआत करता है।

यह भी पढ़े:

क्रिप्टो न्यूज़: 2025 से क्रिप्टो पर लोन, कौन से टोकन मान्य?

कमल हासन की कुल संपत्ति: जानिए पूरी जानकारी!

शनाया कपूर की कुल संपत्ति: जानिए कितनी है!

Filed Under: बिजनेस Tagged With: Anonymous Donations, Contested System, Democracy, Election Finance, Electoral Bonds, Funding Reforms, Indian Politics, Political Funding India, Supreme Court Ruling, Transparency Debate

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