मध्य प्रदेश

बर्मा सागवान: खेती से बनाएं पुश्तैनी संपत्ति

बर्मा सागवान की खेती: एक लाभकारी विकल्प

अगर आप खेती में कुछ नया और अलग करने की सोच रहे हैं, तो बर्मा सागवान की खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। यह न केवल आपको परंपरागत फसलों से अलग एक नया अनुभव देगी, बल्कि लंबे समय में अच्छा मुनाफा भी कमाने का मौका मिलेगा। खंडवा और निमाड़ जैसे क्षेत्रों में किसान अब गेहूं, सोयाबीन और चना जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर एग्रो-फॉरेस्ट्री और हॉर्टिकल्चर की ओर रुख कर रहे हैं, जिसमें सागवान की खेती सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है।

सागवान की खेती क्यों करें?

सागवान की लकड़ी एक बहुमूल्य वस्तु है जिसकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है। इसका उपयोग प्लाईवुड, फर्नीचर, रेल डिब्बे और जहाज निर्माण जैसे उद्योगों में किया जाता है। इसके अलावा, इसकी छाल और पत्तियों से शक्तिवर्धक आयुर्वेदिक दवाएं भी बनाई जाती हैं।

खंडवा जिले के कई किसान इस दिशा में सफल प्रयोग कर रहे हैं और लाखों रुपये कमा रहे हैं। यदि एक किसान 1 एकड़ जमीन में 10×10 फीट की दूरी पर सागवान के पौधे लगाता है, तो लगभग 120 पौधे लगाए जा सकते हैं। ये पौधे 15 वर्षों में परिपक्व होकर लाखों रुपये की लकड़ी का उत्पादन कर सकते हैं।

देसी सागवान बनाम बर्मा सागवान

विशेषज्ञों का कहना है कि देसी सागवान के मुकाबले बर्मा (म्यांमार) टीक का चयन करना बेहतर होता है। देसी सागवान को परिपक्व होने में 25-30 साल लग जाते हैं और पतली लकड़ी होने के कारण बाजार में अच्छी कीमत भी नहीं मिलती। इसलिए, यदि आप सागवान लगाने की सोच रहे हैं, तो बर्मा टीक या टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे ही लगाएं। ये पौधे 12-15 वर्षों में परिपक्व हो जाते हैं और उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी प्रदान करते हैं।

लागत और संभावित लाभ

लागत विवरण अनुमानित राशि (₹)
पौधरोपण लागत (120 पौधे) 30,000 – 40,000 (टिश्यू कल्चर वाले पौधे)
सिंचाई और देखभाल (15 वर्ष) 60,000 – 70,000
कुल लागत 1 लाख – 1.2 लाख प्रति एकड़

15 वर्षों बाद, एक परिपक्व पेड़ से औसतन ₹10,000 से ₹15,000 की लकड़ी प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार, 120 पेड़ों से ₹12 लाख से ₹18 लाख तक की आय हो सकती है।

इस तरह, किसान केवल एक एकड़ जमीन से 15 वर्षों में ₹15 लाख तक की आय कर सकता है, जो पारंपरिक खेती से कई गुना अधिक है।

अतिरिक्त विकल्प: महोगनी और मलाबार नीम

सागवान के अलावा, किसान महोगनी और मलाबार नीम जैसे पौधों की खेती भी कर सकते हैं। महोगनी 10-12 वर्षों में तैयार हो जाती है और इसकी लकड़ी की कीमत बहुत अधिक होती है। मलाबार नीम केवल 3-4 वर्षों में प्लाईवुड उद्योग के लिए परिपक्व हो जाती है। इनकी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी मांग है, जिससे किसानों को बाजार की चिंता नहीं रहती।

पौधे कहां लगाएं?

किसान चाहें तो मुख्य फसलों के साथ खेत की मेड़ (बॉर्डर) पर भी इन पौधों को लगा सकते हैं। इससे उनकी वर्तमान फसल पर कोई असर नहीं होगा और भविष्य में लकड़ी का बड़ा मुनाफा मिलेगा।

किसानों के अनुभव

हरदा जिले के गौरीशंकर मुकाती जैसे किसान सागवान की खेती से करोड़ों रुपये कमा चुके हैं। निमाड़ क्षेत्र में भी खमेर और छपीपुरा जैसे गांवों के कई किसानों ने टिश्यू कल्चर सागवान लगाकर सफलता पाई है।

डर नहीं, दूरदर्शिता ज़रूरी

कई किसान आज भी इस खेती को लेकर संकोच में रहते हैं, क्योंकि इसमें मुनाफा लंबी अवधि में मिलता है। लेकिन ध्यान रखें – सागवान की लकड़ी का इंटरनेशनल मार्केट है और इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। आज अगर आप निवेश करते हैं, तो 10-15 साल बाद यह आपकी पुश्तैनी संपत्ति बन सकती है।

खेती को फायदे का सौदा बनाना है तो पारंपरिक खेती से आगे बढ़ें। सागवान, महोगनी और मलाबार नीम जैसे पेड़ों की खेती अपनाएं। टिश्यू कल्चर पौधों का उपयोग करें, प्रमाणित नर्सरी से पौधे लें और वैज्ञानिक तरीके से खेती करें। समय और धैर्य से की गई यह खेती आने वाले वर्षों में किसानों की आर्थिक तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।

सफलता के सूत्र:

  • टिश्यू कल्चर पौधों का उपयोग करें।
  • प्रमाणित नर्सरी से पौधे लें।
  • वैज्ञानिक तरीके से खेती करें।
  • धैर्य रखें और लंबी अवधि के लिए निवेश करें।

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